भोपाल -
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2015 के वृक्ष कटाई नियमों को पलटते हुए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने बिना परमिट के पेड़ों की कटाई और परिवहन की अनुमति देने वाली अधिसूचना को अमान्य करार दिया और वन संपदा की रक्षा के लिए ट्रांजिट पास नियम 2000 को बहाल कर दिया।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ जबलपुर और इंदौर पीठ में दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत, न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति विवेक जैन की पीठ ने यह ऐतिहासिक निर्णय सुनाया।
माननीय हाईकोर्ट का आदेश को लेकर पूरी खबर देखिये अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन का अधिकार पर्यावरण, वन और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा से गहराई से जुड़ा हुआ है। अदालत ने अपने आदेश में 2015 की अधिसूचना और उसके बाद के संशोधनों को रद्द करते हुए कहा कि बिना किसी गहन शोध, सर्वेक्षण या अनुभवजन्य अध्ययन के 62-63 प्रकार के वृक्षों को कटाई और परिवहन के नियमों से छूट देना एक गलत निर्णय था। हाईकोर्ट ने हल्के-फुल्के अंदाज में फिल्म ’पुष्पा’ का उदाहरण देते हुए कहा कि यह फिल्म वन संपदा की अवैध तस्करी और शासन तंत्र में प्रभावशाली सिंडिकेट की भूमिका को उजागर करती है। अदालत ने माना कि वन उपज के अवैध व्यापार से जंगलों को गंभीर खतरा है और यह पूरे पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है। यह फैसला जंगलों को बचाने में एक अहम कदम है। बिना परमिट के पेड़ों की कटाई रोकने से पर्यावरण को बहुत फायदा होगा। न्यायालय के इस आदेश के बाद वन विभाग ने 62
प्रकार के वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें नीम, आम, कटहल, जामुन, पलाश, अशोक, गुलमोहर, सप्तपर्णी, कैथा, सिल्वर ओक और कई अन्य प्रजातियां शामिल हैं। अदालत के इस सख्त आदेश से अवैध लकड़ी कारोबारियों और तस्करों पर लगाम लगाने की उम्मीद जताई जा रही है। राज्य सरकार को अब सुनिश्चित करना होगा कि इस फैसले का प्रभावी क्रियान्वयन हो, ताकि वन संपदा की रक्षा की जा सके और अवैध कटाई पर पूरी तरह रोक लगाई जा सके। ब्यूरो रिपोर्ट एनकाउंटर न्यूज।
अवैध व्यापार पर चिंता, वन संपदा की सुरक्षा पर जोर
वन विभाग ने 62 प्रकार के वृक्षों की कटाई पर लगाया प्रतिबंध
अवैध लकड़ी कारोबारियों और तस्करों पर लगाम लगने की उम्मीद
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