मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि जैन समाज भी हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत आता है और इसे इस कानून के तहत सभी अधिकार प्राप्त होंगे।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर डिवीजन बेंच ने एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जैन समाज पर भी हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे। यह मामला ‘नितेश बनाम शिखा’ के रूप में कोर्ट में प्रस्तुत किया गया था, जहां पत्नी की ओर से अधिवक्ता वर्षा गुप्ता ने यह तर्क दिया कि जैन, बौद्ध और सिख समुदाय भले ही अल्पसंख्यक हों, लेकिन विवाह के मामले में वे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही आते हैं। न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि जैन समाज की विवाह विधि हिंदू विवाह से अलग नहीं है।
उच्च न्यायालय का बड़ा फैसला "जैन समाज पर भी हिंदू विवाह अधिनियम लागू"
सप्तपदी, कन्यादान और पाणिग्रहण जैसी रस्में हिंदू विवाह का अभिन्न अंग हैं, जो जैन समाज में भी निभाई जाती हैं। इसलिए, हिंदू विवाह अधिनियम का लाभ जैन समाज को भी मिलना चाहिए। यह फैसला समान नागरिक संहिता की ओर एक बड़ा कदम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि विवाह से जुड़े कानून केवल धार्मिक आधार पर नहीं, बल्कि प्रथाओं और परंपराओं के आधार पर लागू किए जाते हैं। मामला तब शुरू हुआ जब इंदौर की फैमिली कोर्ट ने एक जैन दंपति की विवाह विच्छेद याचिका यह कहकर खारिज कर दी कि जैन समाज एक अल्पसंख्यक समुदाय है और उस पर हिंदू विवाह अधिनियम लागू नहीं होता। इस आदेश को अधिवक्ता वर्षा गुप्ता ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उन्होंने दलील दी कि संविधान में जैन, बौद्ध और सिख समुदाय को हिंदू धर्म के अंतर्गत ही रखा गया है और उनकी विवाह विधि भी हिंदू रीति-रिवाजों से अलग नहीं है। फैमिली कोर्ट का यह कहना कि जैन समाज हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता, पूरी तरह से असंवैधानिक है।
माननीय उच्च न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार किया और फैमिली कोर्ट के आदेश को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। इसके साथ ही, नितेश बनाम शिखा की अपील को भी स्वीकार कर लिया गया।
इंदौर से एनकाउंटर न्यूज की रिपोर्ट।
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