"जल है तो कल है" , "तालाबों का हो रहा "जीर्णोद्धार या फ़िर हत्या".. Violation of Wetland Rules

"तालाबों का हो रहा "जीर्णोद्धार" या फ़िर की जा रही  "हत्या"
"WETLAND AUTHOURITY" के दिशा निर्देशों की उड़ा रहे धज्जियाँ

     इंदौर के भंवरासला तालाब के वाटर चैनल को किया अवरोध, सीमेंट कंक्रीट या स्थायी निर्माण हैं प्रतिबंधित कानून कहता है कि, किसी भी तालाब पर काम करने से पहले वेटलैंड अथॉरिटी, वन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति लेना अनिवार्य है। लेकिन इंदौर में अधिकांश काम बिना मंजूरी किए जा रहे हैं। भंवरासला तालाब का मामला और भी चिंताजनक है। 


   
  10-04-2025.. इंदौर , जो अब "वेटलैंड सिटी" के रूप में विश्वपटल पर अपनी पहचान बना चुका है, वहां की वेटलैंड्स ही आज सबसे ज्यादा उपेक्षित और खतरे में हैं। अफसोस इस बात का है कि जिन अधिकारियों के सिर पर इन वेटलैंड्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वही अपने आदेशों और योजनाओं से इनकी सेहत बिगाड़ने में जुटे हैं। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्पों को साकार करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशानुसार चल रहा पानी को बचाने का यह अभियान जन-जन के जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण अभियान है। "जल है तो कल है", जल से आने वाली पीढ़ी का भविष्य जुड़ा हुआ है। जल चिन्ता व चिंतन दोनों का विषय है। जल हमारी धरोहर है। हमारी संस्कृति एवं परंपरा में जल और वृक्षों की पूजा का बड़ा महत्व है, इसको देखते हुए इस अभियान को बेहतर और प्रभावी रूप से क्रियान्वित करना होगा। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस पर बहुत काम कर रहे है। बता दे कि हर साल शासन, प्रशासन तालाबों की खुदाई, पाल निर्माण और सौंदर्यीकरण के आदेश तो जारी कर देते हैं। लेकिन यह भूल जाते हैं कि तालाब या कोई भी जलाशय केवल जिला प्रशासन की संपत्ति नहीं हैं, बल्कि ये मध्यप्रदेश वेटलैंड अथॉरिटी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। 
  
                                                   for full news please click the link
     

  



कानून कहता है कि किसी भी तालाब पर काम करने से पहले वेटलैंड अथॉरिटी, वन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति लेना अनिवार्य है। लेकिन इंदौर में अधिकांश काम बिना मंजूरी किए जा रहे हैं। भंवरासला तालाब का मामला और भी चिंताजनक है। यहां सीएम मोहन यादव से तालाब सुधार का शुभारंभ करवा कर कानून की धज्जियां उड़ाई गईं। 

तालाब चार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैला है, जो वेटलैंड मैनेजमेंट नियम 2017 धारा 4 के दायरे में आता हैनियम यह है कि:- 
  •  फुल टैंक लेवल से 50 मीटर तक के क्षेत्र को बफर जोन माना जाता है, जहां एक पत्थर भी नहीं लगाया जा सकता। लेकिन यहां सीमेंट, कंक्रीट और टाइल्स से पाल को पक्का किया जा रहा है। तालाब के चारों ओर दीवारें बन चुकी हैं और पानी के बहाव के सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं। 
  • फव्वारे लगाने की योजनाएं बनाई जा रही हैं, जबकि इनके लिए भी वेटलैंड अथॉरिटी की इजाजत जरूरी है।
  • नाले से तालाब में पानी को पाइप के जरिए पहुंचाया जा रहा है, जबकि यह सीधे तौर पर वेटलैंड एक्ट का उल्लंघन है। 
  • तालाबों की सीमा तय करना और बफर जोन में किसी भी तरह का निर्माण न करना सबसे पहला कदम होता है। लेकिन इंदौर में पहले निर्माण होता है, बाद में कानून की व्याख्या की जाती है। 
  • सुप्रीम कोर्ट में पहले से इस मुद्दे पर सुनवाई चल रही है, फिर भी प्रशासन लगातार नियमों को नजर अंदाज करते हुए कार्य करवा रहा है। करोड़ों रुपये की सरकारी राशि तालाब सुधार के नाम पर ऐसी योजनाओं पर खर्च हो रही है, जो वास्तव में तालाब की बर्बादी बन रही हैं। 
आज इंदौर में पर्यावरण को लेकर काम करने वालों की भरमार है, लेकिन अधिकतर या तो मौन हैं या फोटो खिंचवाकर ’सस्टेनेबिलिटी’ की दिखावटी मुहिम चला रहे हैं। जरूरत है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस संवेदनशील मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दे। जब तक तालाबों की सीमा, जल बहाव और बफर जोन का वैज्ञानिक आधार पर निर्धारण नहीं हो जाता, तब तक किसी भी निर्माण या सौंदर्यीकरण कार्य पर पूर्ण विराम लगाना ही पर्यावरण हित में होगा। 


वेटलैंड नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां तालाब संवर्धन के नाम पर नियमों की अनदेखी वेटलैंड अथॉरिटी की मंजूरी के बिना तालाबों पर काम फुल टैंक लेवल से 50 मीटर दायरे में हो रहा कंक्रीट निर्माण

इंदौर से एनकाउंटर न्यूज की रिपोर्ट।



Post a Comment

0 Comments